मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

गोपियो संग कन्हैया

चुपके - चुपके चल री पुरवईया
ओ चुपके - चुपके चल री पुरवईया
चुपके - चुपके चल री पुरवईया
बाँसुरी बजाये रे , रास रचाये दईया रे दईया
गोपियों संग कन्हैया
चुपके - चुपके चल री पुरवईया
चुपके - चुपके चल री पुरवईया
पाग़ल पवन से , कैसे कोई बोले
पाग़ल पवन से , कैसे कोई बोले
गोरी के मुख से , घुंघटा ना खोले ,
डोले , हौले से मन की नईया
गोपियों संग कन्हैया
चुपके - चुपके चल री पुरवईया
चुपके - चुपके चल री पुरवईया
ये क्या हुआ मुझको , क्या है ये पहेली
ये क्या हुआ मुझको , क्या है ये पहेली
ऐसे जैसे के , कोई राधा की सहेली मैं भी ,
ढूँढू कदम की छैंया
गोपियों संग कन्हैया
चुपके - चुपके चल री पुरवईया
चुपके - चुपके चल री पुरवईया
ऐसे समय पे कोई , चुप भी रहे कैसे
ऐसे समय पे कोई , चुप भी रहे कैसे
बाँध लिए ऋतु ने , पग मैं घुँघरू जैसे
नाचे मन ता थईया ता थईया
गोपियों संग कन्हैया
चुपके - चुपके चल री पुरवईया
चुपके - चुपके चल री पुरवईया

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

दोस्तो कहानी थोड़ी पुरानी है पर अच्छी है जरूर पढ़े,
पिताजी केअचानक आ धमकने से
पत्नी तमतमा उठी--
“लगता है, बूढ़े को पैसों की ज़रूरत आ पड़ी है
वर्ना यहाँ कौन आनेवाला था! अपने पेट
का गड्ढ़ा भरता नहीं,
घरवालों का कहाँ से भरोगे?” मैं नज़रें बचाकर
दूसरी ओर देखनेलगा।
पिताजी नल परहाथ-मुँह धोकर सफ़र की थकान दूर
कर रहे थे। इस बार
मेरा हाथ कुछ ज्यादा ही तंग हो गया। बड़े बेटे
का जूता फट चुका है।वह स्कूल जाते वक्त रोज
भुनभुनाता है।
पत्नी के इलाज केलिए
पूरी दवाइयाँ नहीं खरीदी जा सकीं।
बाबूजी को भी अभी आना था। घर में बोझिल
चुप्पी पसरी हुई थी। खाना खा चुकने पर
पिताजी ने मुझे पास बैठने का इशारा किया।
मैंशंकित था कि कोई आर्थिक समस्या लेकर आये
होंगे। पिताजी कुर्सी पर उठ कर बैठ गए। एकदम
बेफिक्र।
“सुनो”
कहकर उन्होंने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा । मैं सांस
रोकर उनकेमुँह की ओर देखने लगा। रोम-रोम कान
बनकर अगला वाक्य सुननेकेलिए चौकन्ना था।
वे बोले, “खेती केकाम में घड़ी भर भी फुर्सत
नहीं मिलती। इस बखत काम का जोर है।रात
की गाड़ी से वापस जाऊँगा। तीन महीने
सेतुम्हारी कोई
चिट्ठी तक नहीं मिली। जब तुम परेशान होते हो,
तभी ऐसा करते हो।" उन्होंने
जेब से सौ-सौ के दस नोट निकालकर मेरी तरफ
बढ़ा दिए, “रख लो। तुम्हारे
काम आएंगे। धान की फसल अच्छी हो गई थी। घर
मेंकोई दिक्कत नहीं है।तुम बहुत कमजोर लग रहे हो।ढंग
से खाया-
पिया करो। बहू का भी ध्यान रखो।" मैं कुछ
नहींबोल पाया।शब्द जैसे मेरे हलक में फंसकररह गये
हों। मैं कुछकहता इससे पूर्व ही पिताजी ने प्यार से
डांटा,
“ले लो।
बहुत बड़े हो गये हो क्या?”
“नहीं तो।" मैंने हाथ बढ़ाया। पिताजी ने
नोट मेरी हथेली पर रख दिए। बरसों पहले
पिताजी मुझे स्कूल भेजने केलिए
इसी तरह हथेली परअठन्नी टिका देते थे, पर तब
मेरी नज़रेंआजकी तरह झुकी नहीं होती थीं।
दोस्तों एक बात हमेशा ध्यान रखे माँ बाप अपने
बच्चो पर बोझ हो सकते हैं बच्चे उन पर
बोझ कभी नही होते है। अगर इस कहानी ने आपके
दिल को छुआ
हो तो अपनी राय जरूर दे।।।।
टूथपेस्ट के UNEXPECTED USE, जो आपको शायद ही पता हो!
रोजाना सुबह जब हम उठते हैं तो अपनी दिनचर्या से जुड़े कुछ
सामान्य कार्य होते हैं जो सभी अनिवार्य रूप से करते हैं। ब्रश
करना भी हमारी दिनचर्या का ऐसा ही अभिन्न हिस्सा हैं।
दांतों को साफ और मोतियों सा चमकदार दिखाने के लिए लोग
तरह-तरह के टूथपेस्ट का उपयोग करते हैं, लेकिन क्या कभी आपने
सोचा है कि टूथपेस्ट का उपयोग दांत साफ करने के अलावा अन्य
कामों में भी किया जा सकता है। अगर नहीं, तो आज हम
आपको बताने जा रहे हैं टूथपेस्ट के कुछ ऐसे यूज जो आपने कभी सोचे
भी नहीं होंगे।
1. पिंपल की समस्या में टूथ पेस्ट बहुत उपयोगी साबित
हो सकता है। अगर आपको किसी पार्टी में जाना हो और चेहरे पर
पिंपल निकल आए तो रात को सोने से पहले उस पर टूथपेस्ट लगा लें।
रातभर में टूथपेस्ट पिंपल का तेल सोख लेगा और सुबह तक पिंपल बैठ
जाएगा। इस नुस्खे को वो लोग न अजमाएं जिन्हें टूथपेस्ट से
एलर्जी है।
2. माना जाता है कि बच्चों की दूध की बॉटल अगर ठीक से
साफ न हो तो वह कई बीमारियों का कारण बन सकती है।
इसीलिए अगर बच्चों की दूध की बॉटल को अच्छे से साफ करके
स्मैल फ्री बनाने के लिए बॉटल साफ करने के ब्रश पर
थोड़ा सा टूथपेस्ट लगाएं और बॉटल साफ करें।
3. टूथपेस्ट का यूज करके घर पर ही मैनिक्योर किया जा सकता है।
थोड़ी मात्रा में टूथपेस्ट लेकर उसे पानी में घोल लें। अपने
हाथों को उस पानी में डूबो लें कु छ देर तक हाथों को उसमें
डूबा रहने दें फिर हाथों को हल्के-हल्के से मसाज करें। टूथ ब्रश से
नाखून के आसपास की सफाई करें। घर पर ही मैनिक्योर करने का ये
सबसे आसान तरीका है।
4. कपड़े पर टमाटर सॉस या स्याही का दाग लग जाए तो टूथपेस्ट
लेकर उसे कपड़े पर मलें थोड़ी देर रहने दें फिर कपड़े को धीरे-धीरे मलें
दाग दूर हो जाएगा। घर की दीवार बच्चे कलर से खराब कर दे
तो टूथपेस्ट लगाकर रगड़कर साफ कर दें रंग साफ हो जाएगा।
5. यदि कोई जल जाए तो जलन से तुरंत राहत व छालों से बचने के
लिए टूथपेस्ट लगाएं जलन में आराम मिलेगा व जले का निशान
भी नहीं रहता है। कीड़े के काटने पर भी टूथपेस्ट लगा लेने पर राहत
मिलती है।
6. हाथ में अगर किसी तरह की स्मैल आ रही हो और आपको तुरंत
मुक्ति चाहिए तो हाथ में थोड़ा सा टूथपेस्ट लेकर
हाथों को साफ करें हाथ जर्म फ्री के साथ ही स्मैल
फ्री हो जाएंगे। अगर गहनों की चमक फीकी पड़ गई हो और उन्हें
फिर से चमकाना हो तो गहनों पर टूथपेस्ट लगाकर टूथ ब्रश से साफ
करें तो गहने नए से चमकने लगेंगे।
7. आऊच! क्या शेव करते वक्त आपने अपने आप को चोट
पहुंचा ली इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। बाथरूम के धुंध से ढ़के कांच के
कारण चेहरा साफ दिखाई जो नहीं दे रहा था। अगली बार
ऐसा न हो इसके लिए कांच पर नॉन जेल टूथपेस्ट लगाकर नहाने से
पहले वाइप करें। आप नहाकर आ जाएंगे तब भी कांच
धुंधला नहीं पड़ेगा।
8. अगर लगातार नेल पालिश लगाने से आपके नाखूनों की चमक
फीकी पड़ गई हो तो नाखूनों से नेल पॉलिश को हटाएं और कुछ
देर तक हल्के हाथों से नाखूनों पर टूथ पेस्ट से मालिश करें। नाखून
चमकने लगेंगे।

बुधवार, 10 दिसंबर 2014

११/सफलता की कुंजी

 हमारे धर्म-ग्रन्थ मे एक बड़ा सुन्दर मंत्र इन शब्दों मे मिलता है-"उठो, जागों और जब तक ध्येय की प्राप्ति न हो, प्रयत्न करते रहों।" जीवन मे सफलता की यही कुंजी है। बिना सक्रियता के कुछ नही हो सकता। हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे तो क्या मिलेगा? दुनिया उसी को प्यार करती है, उसी को मान देती है, जो मेहनत करता है ओर खरी कमाई करके खाता है। आदमी का काम प्यारा होता है चाम नही।
 कुछ लोग बड़ी-बड़ी चीजों के चक्कर मे छोटी-छोटी चीजों की ओर ध्यान नही देते। वे भूल जाते है कि जो छोटी चीजों को नही सॅभाल सकता, वह बड़ी चीजों के योग्य नही बन सकता।
 एक बार गांधीजी की एक छोटी-सी पैसिल इधर-उधर हो गयी। उसकी तलाश मे उन्होने दो घटें खर्च किये और जब वह मिल गयी, तब उन्हे चैन पड़ा। वह जानते थे कि छोटी चीजों के प्रति लापरवाही हुई कि फिर बड़ी चीजों के लिए भी आदमी मे वह दुर्गुण आ जाता है।
 हमारी सफलता इस बात मे है कि हम सावधान रहकर, जो भी काम हमारे हाथ मे हो, उसे अच्छी तरह पूरा करें। हिमालय की चोटी पर च़ढ़ने के अवसर कम ही आते है, लेकिन हाथ के काम को कुशलता से करने का मौका तो हर घड़ी सामने रहता है।
 रूसों संसार का एक महापुरूष हो गया है।उसने लिखा, "जो मनुष्य अपने कर्त्तव्य को अच्छी तरह से करने की शिक्षा पा चुका है, वह मनुष्य से सम्बन्ध रखने वाले सभी कामों को भली-भॉती करेगा। मुझे इसकी चिन्ता नही कि मेरे शिष्य सेवा, धर्म या न्यायलय के लिए बनाए गए है। समाज से सम्बन्ध रखने वाले किसी काम के पहले प्रकृति ने हमें मानव-जीवन से सम्बन्ध रखने वाले काम करने के लिए बनाया है। यही मै अपने शिष्य को सिखाऊँगा। जब उसे यह शिक्षा मिल चुकेगी, तब वह न सिपाही होगा, न पादरी होगा और न वकील ही। वह पहले मनुष्य होगा, फिर और कुछ।"
 कुछ लोग जीवन की सफलता पैसे ऑंकते है। जिसने अधिक कमाई कर ली, उसके लिए माना जाता है कि वह जिन्दगी मे सफल रहा। पर धन सफलता की असली कसौटी नही है। धन साधन है, जीवन का साध्य नही हो सकता। यदि पैसा ही सबकुछ होता तो बुद्ध, महावीर, गांधीजी आदि महापुरूष क्यों गरीबी का जीवन अपनातें? बुद्ध और महावीर तो राजा के बेटे थे, राज्य के अधिकारी थे, लेकिन उन्होने राज-पाट के वैभव से मुँह मोड़कर उस रास्ते को अपनाया, जिससे ढाई हज़ार वर्ष बाद आज भी वे जीवित है और जब तक मानव-जाति है, आगे भी जीवित रहेगें। गांधीजी को कौन-सी कमी थी? लेकिन उन्होने सादगी का जीवन अपनाया। आज सारी दुनिया उन्हे प्यार करती है। उनका मान करती है।
 आदमी को निराशा तभी होती है, जब वह आशा रखता है। जो काम वह करता है, उसके फल मे उसकी आसक्ति रहती है। गीता बताती है-"काम करों, पर फल की इच्छा मत रक्खों।" मेहनत कभी अकारथ नही जाती। फलों के पेड़ों पर फल आते ही है। लेकिन फलों पर हमारी इतनी निगाह रहती है कि पेड लगाने के आनन्द को हम अनुभव नही करते। अच्छी तरह से काम करने का अपना निराला ही उल्लास होता है।
 कुछ लोग कहते है, यह भी कोई जिन्दगी है कि हर घड़ी काम करते रहों। बहुत दिन जीने के लिए आराम बड़ा जरूरी है। ऐसा कहने मे एक बुनियादी दोष है। हर घड़ी काम करने का मतलब यह नही है कि आदमी कभी आरम ही न करे। उसका मतलब है, आदमी कर्मठ रहे, आलस न करें। सच बात यह है कि निष्क्रिय जीवन से बढ़कर दूसरा अभिशाप नही है। जो लोग क्रियाशील रहते है, वे काम करने का सन्तोष पाते है और अपनी प्रसन्नता से धरती का बोझ हल्का करते है। इसके विपरीत जो काम से बचते है,वे स्वयं तो परेशान होते ही है, समाज मे भी बडा दूषित वायुमण्डल पैदा करते है। कर्ममय जीवन दूसरो पर अच्छा असर डालता है, आलसी दूसरे को आलसी बनाता है।
 बचपन मे अंग्रेजी की एक बड़ी सुन्दर कविता पढ़ी थी। कवि कहता है, "उठो, दिन बीता जा रहा है और तुम सपने लेते हुए पड़े हुए हो! दूसरे लोगो ने अपने कवच धारण कर लिए हैऔर रणभूमि मे चले गये है।। सेना की पंक्ति मे एक खाली जगह है, जो तुम्हारी राह देख रही है। हर आदमी का अपना कार्य करना होता है।"
 मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है, उसके कर्त्तव्य बढ़ते जाते है। वह जितनी खूबी से उनका पालन करता है, उतना ही वह अच्छा नागरिक बनता है और समाज को सुखी बनाता है।
 हर आदमी के लिए ऊँचाई पर स्थान है, लेकिन वहॉँ पहँचता वही है, जिसके अन्तर मे आत्म-विश्वास होता है, हाथ-पैरों मे ताकत होती है, निगाह मे ऊँचाई होती है ओर हृदय में सबके लिए प्रेम और सहानुभूति का सागर उमड़ता रहता है।
 ऐसा आदमी जानता है कि उसके ऊपर सदा निर्मल आकाश है। अगर कभी बादल घिर भी आते है तो वे अधिक समय नही टिकते है। अपने लक्ष्य पर आँख रखकर मज़बूती से बढ़े चलना इंसान का सबसे बड़ा कर्त्तव्य है।
१०/अपने पर भरोसा

 आदमी कितनी भी मेहनत कर ले, अगर उसे अपने पर भरोसा नही है तो वह जीवन मे सफल नही हो सकता। बाहरी साधन इंसान के लिए जरूरी होते है, कुछ हद तक मदद भी करते है, लेकिन बिना आत्मविश्वास के उसकी गाड़ी नही बढ़ सकती। अपने पैरो की ताक़त के बिना आदमी दूर तक नही जा सकता।
 अपने पर भरोसे के मयने होते है-अपनी शक्तियों पर भरोसा। किसी भी काम को करने वाले आदमी मे अगर यह विश्वास है कि उसे जरूर पूरा कर सकेगा तो वह पूरा होकर ही रहेगा। जन्म से सारे गुण को पैदा कर सकता है। आत्म-विश्वास भी काम से आता है। गांधीजी बचपन मे डरपोक थे, लेकिन आगे चलकर ऐसे निडर बने कि दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें नही डरा सकी।
 आत्म-विश्वास सौ रोगो की एक दवा है। आत्म विश्वास है तो आपको काम के लिए नहीं भटकना पड़ेगा, भयंकर बीमारियॉँ नही पडेंगी, चिन्ताऍ आपका खून नहीं चूसेंगी ओर दुनिया की असफलताओं की वेदना आपको नही उठानी पड़ेगी। आत्म-विश्वास वह शक्ति है, जो असम्भव को भी सम्भव करके दिखा देती है।
 आत्म-विश्वास दृढ़ इच्छा-शक्ति सेउत्पन्न होता है। इच्छा-शक्ति वैसे हरकिसी मे होती है; किन्तु बहुत से लोगों मे वह सोती पडी रहती है। वे जानते ही नही कि उनके अन्दर शक्ति है। जो उसे पहचान लेते है, उनमें यह विश्वस पैदा हो जाता है कि वे जो कुछ करेगें , अच्छा ही होगा। ऐसे आदमी हौसले से काम करते जाते है ओर सफलता हर घड़ी उनके दरवाजें पर खड़ी रहती है।
  एक राजा पर उसके दुश्मन ने हमला किया। राजा ने उसका मुकाबला किया, लेकिन वह हार गया। अपने राज्य से भागकर वह एक गुफा मे जा छिपा। राज्य को वापस पाने की उसे कोई आशा न रही। गुफा मे बैठकर उसे बीते दिनों की याद सताने लगी। अकस्मात उसकी निगाह सामने की दीवार पर गयी। देखता क्या है कि एक कीड़ा बार-बार ऊपर चढ़ने की
कोशिश कर रहा है। चढ़ता है, गिर पड़ता है। इस तरह वह छ: बार चढ़ा ओर छ: बार गिरा, लेकिन उसने अपना प्रयास नही छोड़ा। राजा बड़ी उत्सुकता से उसे देखता रहा। सातवी बार उसकी कोशिश सफल हुई। वह ऊपर पहुंच गया। राजा सोचने लगा-इस छोटे-से कीडे ने हार नही मानी और ऊपर पहुँचकर ही रहा। आखिर मै तो आदमी हूं, कोशिश करूँ तो कोई वजह नही कि मेरी जीत न हो। यह सोचकर वह बाहर निकला और हिम्मत के साथ अपनी बिखरी सेना को इकटठा करके उसने फिर अपने राज्य को जीतने की कोशिश की। उसे अब भरोसा हो गया था कि उसे अवश्य सफलता मिलेगी और उसकी बात सही निकली।


राजा ने देखा,कीड़े ने हार नहीं मानी।

पं. जवाहरलाल नेहरू ने ठीक ही लिखा है, "हमारी कामयाबी इस बात मे नही है कि हम कभी गिरें ही नही। हमारी कामयाबी इसमें है कि गिरते ही हम हर बार उठकर खड़े हो जायें।"
 कुछ लोग आत्म-विश्वास को घमण्ड मानते हैं। यह गलत है। दोनो मे जमीन आसमान का अन्तर है। आत्म-विश्वास आदमी का गुण है, जो उसे काम रकने का हौसला देता है। घमण्ड दुर्गुण है। वह आदमी को गिराता है।उससे आदमी के सारे गुणों पर पर्दा पड़ जाता है ओर समाज मे सब लोग उसे तिरस्कार की निगाह से देखते है। घमण्ड आदमी का बहुत बड़ा दुश्मन है।
९/काम मे प्रसन्नता

  किसी बड़े आदमी ने कहा है कि जिस काम मे प्रसन्नता, आन्नद न हो, वह बेकार है। हम रोज़ देखते है कि कुछ लोग थोड़ा-सा काम करके थक जाते है, जबकि कुछ लोग ढेर-का-ढेर काम करके भी फूल की तरह खिले रहते है। इसका कारण क्या है। इसका कारण यही है कि जिनको काम मे रस नही आता, उनके लिए काम ,भारी बोझ-सा होता है और भला भारी बोझ लेकर आदमी कितनी दूर चल सकता है? जिनको काम में रस मिलता है, वे उसमें आनन्द लेते हैं, उसे सहज भाव से करते है, इसलिए काम का भार उन पर नही पड़ता।
 काम में यह आन्नद तब मिलता है, जबकि हम काम के साथ आत्मीयता का नाता जोड़ लेते है। मॉँ अपने बच्चे के लिए रात-रात भर जागती है, फिर भी उसे वह भारी नही पड़ता। दूसरे के लिए थोड़ा-सा भी जगने मे उसे हैरानी हो जाती है।
 यह भी जरूरी है कि हम किसी भी काम को छोटा न समझे। हमारे यहॉँ बुद्धि से काम करने वाले शरीर की मेहनत से होने वाले कामों को छोटा समझते है। नतीजा यह कि जब उन्हें शरीर से काम करना पड़ता है तो उन्हें आनन्द नही आता। कोई भी काम छोटा नहीं है, न कोई काम बड़ा है। सबका अपना-अपना स्थान है। कहावत है न कि , "जहॉँ काम अवे सुई, कहॉँ करै तलवार।" यानी जहॉँ सूई की आवश्यकता है, वहॉँ तलवार क्या करेगी? रसोई मे काम करने वाला रसोइया, दफ्तर मे काम करने वाला बाबू, कक्षा मे पढ़ाने वाला अध्यापक, प्रयोगशाला मे प्रयोग करने वाला वैज्ञानिक, इमारतों के नक्शे बनाने वाला इंजीनियर, खेतों मे काम करने वाले किसान और मज़दूर आदि-आदि सबके काम अपना-अपना महत्व रखते है। उनमें न कोई हेय है, न कोइ श्रेष्ठ है। सब आदमी के लिए जरूरी है ओर एक-दूसरे के पूरक है।
 जब काम के साथ ऐसी भावना पैदा हो जाती है तो उसमें से आनन्द का सोता फूट पड़ता है। काम बहुत ही प्यारा लगने लगता है। शेक्सपियर ने लिखा है, "जिस परिश्रम से हमें आनन्द मिलता है, वह हमारी व्याधियों के लिए अमृत के समान होता है।"
 काम मे आदमी को रस मिलने से उसका उत्साह बढ़ता है। उत्साह बढ़ने से आदमी के हाथ दूना काम करते है। उत्साह वह ज्योति है, जिसके आगे निराशा का अंधकार एक क्षण नही ठहरता। उत्साह से भरा व्यक्ति कभी खाली नही बैठ सकता। उसे नित नये-नये काम सूझते रहते है। बड़ी उम्र मे भी जवान बना रहता है।
 जीवन में सबके सामने बड़े-बड़े अवसर आते रहते है। जो उन्हे पहचानकर पकड़ लेते है, वे महान काम कर डालते है। किसी चित्रशाला मे एक चित्र था, जिसमें चेहरा बालों से ढँका था और पैर मे पंख लगे थे। किसी ने पूछा, "यह किसकी तस्वीर है?"

गांधी जी के लिए कभी कोई काम छोटा न था।

कलाकार ने कहा, "अवसर की।"
"इसका मुँह क्यों छिपा हुआ है?"
"इसलिए कि जब यह लोगों के सामने आता है तो वे इसे पहचान नही पाते।"
"इसके पैर में पंख क्यो लगें है?"
 "इसलिए कि यह बड़ी तेजी से भाग जाता है और एक बार गया कि उसे कोई नहीं पकड़ सकता।"
 उत्साही आदमी अवसर को कभी हाथ से नही जाने देता। उसकी ऑंखे सदा खुली रहती है और उसकी बुद्धि हमेशा जाग्रत रहती है।
 बाइबिल मे कहा है-"काम पूजा है।" जिस तरह लोग पूजा मे ऊँची निगाह और ऊँची भावना रखते है, वैसी ही निगाह और भावना हमें हर काम मे रखनी चाहिए। जिसे काम मे रस आता है, वही काम की महिमा को जानता है, वही काम को कर्त्तव्य मानकर करता है। गांधीजी को इतने बड़े-बडे काम रहते थे, लेकिन फिर भी वही अपने आश्रम के छोटे-से-छोटे काम मे भी मदद करते थे। रसोई मे साग काटते थे, पखाना साफ करते थे, बीमारों की देख-भाल करते थे। काम उनके लिए सचमुच की पूजा थी।
८/तल्लीनता

 बहुत-से कामों मे हमें सफलता नहीं मिलती तो इसकी वजह यह है कि हम उन कामों को पूरे मन से नही करते। काम उठाया, थोड़ा-सा किया, मन मे दुविधा पैदा हो गयी-यदि यह काम पार न पड़ा तो? नही, इसे यों करें तो ठीक रहेगा। उस तरह सोच लो, फिर उसे करना शुरू करो। एक बार शुरू कर दिया तो उसे अपनी पूरी शक्ति से करों। जिसकी निगाह इधर-उधर भटकती रहती है, वह अपने लक्ष्य को नही देख सकता। आपने देखा होगा, तॉँगे मे घोड़े की ऑंखो के दोनो ओर पटटे बॉँध देते है। क्यो? इसलिए कि उसे सामने का ही रास्ता दिखाई दे। वह दायें-बायें न देखे।
 स्टीफन ज्विग दुनिया के बहुत बड़े लेखक हुए है। वे एक बार एक बड़े कलाकार से मिलने गये। कलाकार उन्हे अपने स्टूडियों मे ले गया और मूर्तियों दिखाने लगा। दिखाते-दिखाते एक मूर्ति के सामने आया। बोला, यह मेरी नयी रचना है।" इतना कहकर उसने उस पर से गीला कपड़ा हटाया। फिर मूर्ति को ध्यान से देखा। उसकी निगाह उस पर जमी रही। जैसे अपने से ही कुछ कह रहा हो, वह बड़बड़ाया-"इसके कंधे का यह हिस्सा थोड़ा भारी हो गया है।" उसने ठीक किया। फिर कुछ कदम दूर जाकर उसे देखा, फिर कुछ ठीक किया। इस तरह एक घंटा निकल गया। ज्विग चुपचाप खड़े-खड़े देखते रहे। जब मूर्ति से सन्तोंष हो गया तो कलाकार ने कपड़ा उठाया, धीरे-से उसे मूर्ति पर लपेट दिया और वहां से चल दिया। दरवाजें पर पहुचकर उसकी निगाह पीछे गयी तो देखता क्या कि कोई पीछे-पीछे आ रहा है। अरे, यह अजनबी कौन है? उसने सोचां घड़ी भर वह उसकी ओर ताकता रहा। अचानक उसे याद आया कि यह तो वह मित्र है, जिसे वह स्टूडियो दिखाने साथ लाया था। वह लजा गया। बोला, "मेरे प्यारे दोस्त, मुझे क्षमा करना। मै आपकों एकदम भूल ही गया था।"
 ज्विग ने लिखा है, "उस दिन मुझे मालूम हुआ कि मेरी रचनाओं मे क्या कमी थी। शक्तिशाली रचना तब तैयार होती है, जब आदमी सारी शक्तियां बटोरकर एक ही जगह पर केन्द्रित कर देता है।"
 अर्जुन की कहानी बहुतों से सुनी होगी। पाण्डवों के तीर चलाने की परिक्षा लेने के लिए
एक दिन गुरू द्रोणावचार्य ने सब भाईयों का इकटठा किया। बोले, "देखो वह सामने पेड़ पर सफेद रंग की एक नकली चिड़िया है। उसकी आंखों मे लाल रंग के दो रत्न लगे है। तुम्हें उसकी दाहीनी आंख पर निशाना लगाना है।" सब भाई धनुष-बाण लेकर तैयार हो गये। द्रोण ने एक-एक से पूछा, "तुम्हें वहॉँ क्या-क्या दिखाई देता है?" किसी ने कुछ बताया, किसी ने कुछ बताया। जब अर्जुनकी बारी आयी तो उसने कहा, "गुरूदेव मुझे तो उस चिड़िया की दायीं ऑंख के सिवा ओर कुछ दिखाई नहीं देता।" इतनी थी उसकी एकाग्रता। तभी तो वह बाण चलने मे बेजोड़ था।
 एकाग्रता से आदमी का अपने काम को अच्छी तरह करने का मौका मिलता है। साथ ही उसका संकल्प भी पक्का बनता है। "एकहि साधै सब सधै।" एक चीज अच्छी तरह से हो गयी तो बहुत-सी चीजें आप पूरी हो जाती है। दस साल तक विनोबाजी सारे देश मे पैदल घूमते रहे। वह प्यार से उन लोगो से ज़मीन लेते, जिनके पास थी और प्यार से उन्हे दे देते थे, जिनके पास नही थी। विनोबाजी के पेट मे अल्सर था। वह कभी-कभी बड़ा दर्द करता था। उन्हे बड़ी हैरानी होती थी, पर उनकी यात्रा नही रूकती थी। एक बार जब दर्द बढ़ गया तो डॉक्टरों ने उनकी जॉच की। अच्छी तरह से देखभाल करके उन्होने विनोबाजी से कहा, "आपकी हालत गम्भीर है। आप आठ महीने आराम करें।"
 विनोबाजी ने मुस्कराकर कहा, "हालत अच्छी नही है तो आपने चार महीने क्यों छोड़ दियें? अरे, आपको कहना चहिए था कि बारहों महीने आराम करों।"
 डॉक्टरों ने कहा, "आप पैदल चलना छोड़ दें।"
 विनोबाजी ने उसी लहज़े मे जवाब दिया, "मेरे पेट मे दर्द है, पैरो मे नही।"
 विनोबाजी ने एक दिन को भी अपनी पदयात्रा बंद नही की। लोगों ने जब बहुत कहा तो उन्होने जवाब दे दिया, "सूर्य कभी नही रूकता, नदी कभी नही ठहरती, उसी अखण्ड गति से मेरी यात्रा चलेगी।" उनकी इस एकाग्रता का ही नतीजा है कि बिना किसी दबाव के, प्यार की पुकार पर, उन्हें कोई पैतालीस लाख एकड़ भूमि मिल गयी।
 सुकरात बहुत बड़े दार्शनिक थे। एक दिन उनकी पत्नी ने उनसे बाज़ार से साग लाने को कहा। वह चले, पर मन दर्शन की किसी गुत्थी मे उल्झा था। सीढ़ियॉँ उतरने लगे कि मन की समस्या ने उनकी गति रोक दी। वह सीढिय़ो पर ही खड़े थे। वह बड़ी झल्लाई, कुंछ उल्टी-सीधी बाते कही। सुकरात का ध्यान टुटा। बोले, "मै अभी साग लाता हूं।" दो-तीन सीढियॉ तेजी से उतरे, पर मन फिर उलझ गया। पैर पिुर रूक गये। बहुत देर हो गयी। पत्नी चौका साफ करके गंदे पानी की बाल्टी उठाकर फेंकने चली तो देखती क्या है कि वह सीढ़ियों से नीचे भी नहीं उतरे हैं। उसने बाल्टी का पानी उनके ऊपर डाल दिया। उन्होंने हंसकर बस इतना ही कहा, ‘‘देवीजी इसमें अचरज की कोई बात नहीं है। बिजली की कड़क के बाद पानी तो आना ही था।’’
चित्त् की एकग्रता से बहुत-सी घरेलू उलझनें हुईं, लेकिन उसी की बदौलत आज सुकरात को दुनिया याद करती है।
किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा है, ‘‘प्रतिभा के मानी होते हैं नब्बे फ़ीसदी बहाना और दस फ़ीसदी प्रेरणा। दुनिया के काम मेहनत और एकाग्रता से ही पूरे होते हैं। वैज्ञानिको का कहना है कि एक एकड़ भूमि की घास में इतनी शक्ति भरी होती है कि उसके द्वारा संसार की सारी मोटरें और चक्कियां चेलाई जा सकती हैं। ज़रुरत बस उस शक्ति को इअकटठा करने की हैं। भाप को इंजन, पिस्टन रॉड पर केन्द्रित करने की है।
एमर्सन का कथन है-‘‘अगर जिंदगी में कोई बुद्धिमानी की बात है तो वह एकाग्रता है और अगर कोई खराब बात है तो अपनी शक्तियों को बिखेर देना।’’
दुनिया में लोगों में शक्ति की कमी नहीं है, लेकिन वे अपनी उस शक्ति को केन्द्रित करना नहीं जानते। बंधी हुई भाप बड़े-से-बड़े इंजनों को खींच ले जाती है, लेकिन अगर वह बिखर जाय तो बेकार चली जाती है।